| ذاك الهوى أضحى لقلبي مالكا | ولكل جانحة بجسمي مالئا |
| فبمهجتي ثوران بركان جوى | وبظاهري شخص تراه هادئا |
| الغيث جدا في نهاية أمره | ما خلته إحدى المهازل بادئا |
| طرأت علي صروفه من لحظة | في حين أحسبني أمنت لطارئا |
| ولقد أراه مستزيدا شقوتي | لو كان لي بدل المحبة شانئا |
| إني لأسأل بارئي ولعلها | أولى ضراعاتي أرجي البارئا |
| أمنيتي قربي لشمسي ساعة | فأبيد محترقا ولكن هانئا |