| ما غربتي إلا لظىً تتلهبُ | وأنا على جمراتها أتقلبُ |
| شوقي .لها حطبٌ وقلبي | موقدٌ فأي شرارها أتجنبُ |
| همٌّ يهدد بسمتي ويهدني | غمٌّ ليهدم بهجتي ويخرّبُ |
| ويبعثرالأنفاس وجدٌعاصفٌ | ياللرياحِ تكادُ روحي تذهبُ |
| فيضمها صبري لبعض هنيهةٍ | فيعيدُ فرقتها الفراقُ فيغلبُ |
| وتنهكني الألآم لاأقوى لها | إذ لم أكن. لعراكها. أتدربُ |
| منفى ومنأى عن ديار أحبتي | وعن الأحبة غائبٌ متغربُ |
| لو أنها كانت لمثلي جنةً | لكنتُ بأعلى جنتي أتعذبُ |