| و كم سألتُ عنه فقالوا لي |
| أنني حتما لحبه بن أنجلي… |
| إنه لامع بقدر القمر |
| من فرط حبي له كاد ينهمر |
| لونه ازرق كالسماء |
| فأنا منه قد أصبت بالعناء |
| إنه البحر يا سادة |
| مراقبته اصبحت لي عادة |
| من شرفة غرفتي ارى جماله |
| متى سأنزل و اجلس أمامه |
| و اشكي له بعضا من همومي |
| فإنه حقا قد يصنع يومي |
| على خليجه دموعي منهمرة |
| و قد أحصل بحديث معه على فكرة |
| تلهمني و ترد لي الأمل |
| تشرق دربي و تقول لي ماذا أفعل |