| وقد ظفرتُ بودِّ من أهواهُ | فبتُّ أسعدَ الخلقِ أجمعينا |
| تقابلنا، وتحادثنا، وضحكنا | كأننا في جنة دُونَ جَفا |
| وكأنما الزمانُ توقف عندنا | ولم يعد يُدركنا شيءٌ سوانا |
| تناولنا الطعام، وتسامرنا | حتى بدا أذان الظهر قد أرانا |
| فانصرفنا، وودعته بحسرةٍ | كأنني لن أراهُ بعدُ عيانا |
| ولكن تبقى ذكراهُ في قلبِي | غذاءً لروحي، ونورًا بدا |
| يا رب زدني من هذا الهيامِ | فإني في بحور الحبِّ صَبَا |